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समय - पीछे मुड़ के देख |
पीछे मुड़के देखू तो याद आए
कैसे बितायी ज़िन्दगी जो जी आए
सोचु तो हर दिन का हिसाब है
याद करू तो लगे कल की बात है ।
क्या कभी तुमने महसूस किया ?
संघर्ष में हर दिन बीत गया
कुछ संघी साथी छूट गए
कुछ अपने हमसे रूठ गए ।
कोई आके दिल में बस गया
तो कोई दूर हमसे चला गया
कहना , सुनना और कितनी बातें
कैसे काटे दिन और काटी रातें ।
क्या था बचपन ! क्या रही जवानी !
खिलोने , किताबें और प्रेम कहानी
आस पड़ोस और रिश्तेदार
शादी जन्मदिन और तीज त्यौहार
माँ बाप का घर वो अपनापन
निश्चिन्त स्वाभाव और बड़बोलापन ।
हुई शादी चल दिए घर नए
मिला नया परिवार ससुराल में
समझते जिन्हे कई साल लगे
देवर, जेठ और सास ससुर हमारे
सलोना सा पति जो नखरे उठाये
हर बात पे अपनी सहमति जताये ।
बाल बच्चे और घर ग्रहस्ती
रिक्शा, मेट्रो और ऑफिस की जल्दी
वाह री लाइफ तू कैसे गुज़री
हर उम्र मेरी तुझे छू के निकली।
चाहू बैठना तेरे साथ एक दिन
पूछू तुझसे क्या है जल्दी ?
क्यू इतनी जल्दी है बीत रही !
ठहर जाना कुछ पल को ।
जी लेने दे मुझे इसे
वरना छुट्टी लेनी पड़ेगी
पीछे मुड़ के देखने के लिए ।