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अयोध्या- सियाराम कथा |
हुआ राम सीता का ऐसा मिलन !
देख कर रह गए सब उनको मगन ।
रूप का एक सागर माँ जनक नंदनीं
और कमल नयन अपने श्री राम जी । ।
हुआ ब्याह राम जी का सीता के संग
पर संजोग ऐसा , मिला चौदह साल का वन !
सिया राम संग लक्ष्मण भी वन को चले ।
छोड़ कर मोह , माया और अयोध्या को तज । ।
रोते बिलखते सभी वियोग में रह गए ,
रघुपति पर अपने वचन से न डिगे ।
किया पालन माँ की आज्ञा का जो ,
फिर न किया संकोच किसी बात को । ।
आयी बिपदा बड़ी ही वनवास में ,
देखा रावण ने मैथिलि को जब कुटिया में ।
धरा रूप भिक्षु का तब दुष्ट ने ,
अपहरण किया देवी का दशानन ने । ।
अंत को अपने खुद लंकापति ने न्योता दिया ,
श्री राम की महिमा को जो अनदेखा किया ।
राम सन्देश बैदेही को श्री हनुमन ने दिया
राघव की मुंदरी को माँ तक पंहुचा दिया ।
पा के मुंदरी माँ सिय प्रस्सन हो गयी ,
हाल सुनके श्री राम का भाव विभोर हो गयी । ।
वनवास में भक्त हनुमान , श्री राम से मिले ,
और भक्तो में प्रभु के परम भक्त हो गए ।
बानर सेना ने नामुमकिन को मुमकिन किया ,
और समुद्र में भी राम सेतु बना दिया । ।
जो बोया रावण ने वो उसे काटना पड़ा ,
अपनी सोने की लंका को खोना पड़ा ।
पायी मुक्ति , जो प्राण प्रभु ने हरे !
अन्याय को न्याय के आगे पछताना पड़ा । ।
घमंड रावण का आखिर टिक न सका
और बुराई को भलाई के आगे झुकना पड़ा ।
विभीषण लंका का राजा बना ,
साथ देके प्रभु का वो भी तर गया । ।
राह तकते जिनकी आँखे थकी
जानकी माँ उनसे मिलने चली ,
राम प्रभु भी सीता की ओर चले
मिलने की ख़ुशी अपने मन में लिए । ।
कारवां चल दिया फिर अयोध्या की और
फहराता रहा पताका श्री राम चारो और । । ।
घर - घर दीप जले और मनी दिवाली ,
हर चेहरे पे आयी एक मुस्कान पुरानी । ।
समाप्त हुआ अयोध्या नगरी का इंतज़ार यहाँ । ।
जब सियाराम सियाराम हरसू होने लगा । । । ।
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सियाराम |