जिंदगी रही सफर में
सफर ही जिंदगी रहा
कभी अकेले रहे हम
कभी साथ किसी का मिल गया ।
बीता सफर यूँ जैसा के
पलकें झुकी मेरी
आंखें खुली तो पाया
हाथों से लकीरें ही मिट गयी ।
मिले सफर में जो मेरे अपने ख़ास थे
मूँद लू आंखें तो चेहरे वही दिखे
छूट गए जो सफर में वो भी अज़ीज़ थे
हम कुछ नहीं थे उनके पर वो मेरे करीब थे !
ज़िन्दगी सफर में खुद से रूबरू कराती रही मुझे
है सफर ही ज़िन्दगी बस बताती रही मुझे
जो मिल गया मुझे वो भी मेरा नहीं
बस इसी बात का एहसास कराती रही मुझे !