प्रकृति से मिलन |
ऐ दिल चल प्रकृति से मिले
जहाँ पूरी हो मेरी तमन्ना
और चित मेरा प्रसन रहे
हो इश्वरिये शक्ति का एहसास जहाँ
और उसकी रचनाओं से मन जुड़ता रहे
जहाँ मिले असीम सुकून
और दमकता आसमान रहे
धरती जहाँ हो हरयाली लपेटे
और पेड़ फल फूलो से लदे रहे
हो खिली धूप पत्तो से झांकती
और कल कल करती नदिया बहे
नंगे पाओं चल सकू जहाँ में
घास , पुष्प पर ओस दिखे
सुनाई दे जहाँ चिड़ियों की चहक
और पपीहे की पीहू रहे
साथ रहे कोयल की कुहुक
और गूंजती मेरी आवाज़ रहे
हो दरख्त जहाँ गगन चूमते
और भूमि को आकाश मिले
हो तारे नभ में बिछे हुए
और जुगनू धरती पर जलते दिखे
तिलक लगाउ उस मिट्टी से
जो वन उपवन से मुझे मिले
ओढ़ लू मैं वो रंग केसरी
जो उगते सूरज में मुझे दिखे
सजा लू बालों मैं वनफूल
और लाली गुलाब से ले लू मैं
दूध से झरने में नहाके
अंतर मन को पावन करलू मैं
सुन्दर पुष्पों से करके श्रृंगार
फिरसे मन में उमंगें भरलू
ऐ दिल चल प्रकृति से मिले
जहाँ धरती पे मैं स्वर्ग को पा लू
देख लू मैं कुदरत का करिश्मा
और गोद में उसकी खुद को छुपा लू l