NASHA PARHEJ |
भटक गया मैं अपनी राह से
ख़ुशी और गम मे !
आ गया बातों मे दोस्तो
पिछड़ गया अपने लक्ष्य से ।
खो गया सिगग्रेट के धुएँ
और ताश के पत्तो मे !
डुबो दिया खुद को मैंने
शराब की लत मे ।
रहना था नशे से दूर
इसके ही करीब हो गया !
चौपट कर भविष्य अपना
एक नसेड़ी बन गया ।
धूम्रपान की आदत ऐसी लगी मुझे
फिर न किसी की बात सही लगी मुझे !
घर परिवार से दूर लड़खड़ाता मैं रहा
अनजान सड़कों पे न जाने कब सो गया।
कहाँ गिरा पता नहीं
जो चोट लगी उसका अंदाज़ा नहीं !
हर दिन एक नया झूठ बोल के
में अपनी नज़र से ही गिर गया ।
गलती अपनी न सुधार सकूँ
ना किसी का आदर्श बन सकूँ !
नशे से हो गया साथ मेरा !
जो उतरने से पहले ही चढ़ गया ।
घर ग्रहस्ती सब ख़तम हुई
इज़त मेरी बेइज़्ज़ज़त हुई !
पत्नी बच्चे है सब दुखी
अपनी ज़िन्दगी मैंने खुद बर्बाद की ।
हूँ आगे बहुत निकल चुका !
नशे में डूबा हुआ
सही गलत में फरक नहीं
अब रहा मैं सामाजिक नहीं ।
है सबके लिए सन्देश मेरा
जो हाल हुआ मेरा वो अपना न करना
आगे है हम सबको बढ़ना
नशे की आदत से परहेज़ करना ।
है अपने जीवन को सुखमय बनाना
शराब और सिगरेट से दूर हरहना ।
बनो एक जिम्मेदार तुम
निभाओ बेटे का फ़र्ज़ तुम ।
किस्मत से मिला है ये जन्म
बनो किसी का सहारा तुम ।
कुल का दीपक वही है जो
नाम करे अपने कुल का !
श्रवण कुमार न बन सको तो क्या
अहम् है काबिल इंसान बनना ।
हो फ़क्र बेटे पर जिस माँ को
ऐसी तुम संतान बनो ।
किसी के राहों का दीपक बन
जीवन अपना सफल करो । ।