दुःख - दर्द | हिन्द कविता | DUKH - DARD |
दुःख - दर्द ****************************************** ये दर्द सुकून देता है ये तकलीफ भली लगती है इस दुःख से शिकायत कैसी , ये ख़ुशी जान लेती है। ये दर्द जिया है मैंने इसकी अब मुझको आदत है न जाने ख़ुशी कैसी होगी , जो सिर्फ सुनाई देती है। हाँ , जी है मैंने थोड़ी से कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी फिर भी दुःख का मज़ा लिया , जो मुझे छोड़ कभी गया नहीं। ये दुःख भी बहुत जरूरी है जो सुख को परिभाषित करता है बिन दुःख के सुख का मूल्य नहीं , जो सुख का अनुभव कराता है | में सुखी खुद को समझाता हूँ जो दुःख मेरे संग रहता है में इसको खूब समझाता हूँ , ये मुझको खूब समझता है । मैंने अब इससे दोस्ती कर ली ये मुझको प्यारा लगता है ये नहीं रहता जब पास मेरे , कुछ खाली खाली लगता है दोस्तों सच पूछो तो दुःख मेरा सच्चा साथी है मेरे सारे संगी छूट गए ! बस इसकी यारी बाकी है। ये सुख मुझे ख़ुशी क्या देगा , जब दुःख का पलड़ा भारी है । । MisVi Poetry