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मसरूफ है इस कदर इस ज़िन्दगी मे
रूबरू है हर पहर एक नयी कशीदगी मे
दिन की शुरुवात है और दिन ख़तम हो चला
रोज़ की तरह यूँही फिर ऐतबार हो चला
कह रही है वादियाँ, दरख्त और ये क्षितिज
सुकूं को जो तुझको दे रहा वो साथ साथ चल रहा
तमाशबीन है सभी और मौन हर शक़्स है
क्या दिलो में चल रहा ये जानता कौन है
कोई मिले कही कभी तो हाल उसका पूछ लो
इस मतलबी ज़हान में किसी को तो अपना लगो
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