सोचा है मैं तुझसे कहुँ |
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सोचा है मैं तुझसे कहुँ
आ के तेरे साये में रहु
आइना देखने की चाह न हो
खुद को तेरी आंखों में दिखू
सोचा है मैं तुझसे कहुँ
पूरे सोलह सिंगार करू
तेरे माथे से लेके तिलक
पिया में अपनी मांग भरु
सोचा है में तुझसे कहुँ
थोड़ी ज़िद थोड़ी नाराज़ रहु
और मनाने पे तेरे सजन
जारी अपनी खाइशें करू
सोचा है मैं तुझसे कहुँ
बिन तेरे मैं कैसे रहु
बुला लो चाहे पास मुझे
या पास मेरे आ जाओ तुम
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