Kinare |
फासले किनारों के बस यूँ ही बढ़ गए
एक दूसरे से मिलने की चाह में
कितने आगे निकल गए ।
गहराई भी तो नापी न गयी नदी की कभी
कोशिशे की भी तो बस रेत हाथ लगी ।
एक सोच का फर्क जो बदल न सका
कमी तो पुल की थी जो कोई बन न सका ।
खाइशें किनारों की आखिर बदल गयी
किस्मत के आगे उनकी न चली ।
अबतो नदी के किनारे भी बदल गए
जो पहले किनारे रहते थे ,
वो अब किनारे कर गए । ।
#Short video on Kinaare...
सवाल केवल सोच का था जो बदल न सका ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है।
गहराई भी तो नापी न गयी नदी की कभी
ReplyDeleteकोशिशे की भी तो बस रेत हाथ लगी
राम राम
Beautiful picture
ReplyDeleteand superb poem 😍😍
Great
ReplyDelete:)) Thanks
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