Monday, December 13, 2021

कमज़ोर डोर | # HINDI POETRY ON MISUNDERSTANDINGS


कमज़ोर डोर 










कमज़ोर डोर -   Divorce Or Sepration 









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कहनी थी तुमसे बात जो, वो अधूरी रह गयी 

खाई थी जो कसम वो कसम भी रह गयी 

सवाल ऐसे थे के कुछ  कह न सके हम 

जो कटी रात आंखों में वो रात रह गयी


गलतफैमियूं का इलाज  कर न सके हम   

जो सच थी  बात  वो अनकही ही रह गयी

क्या खबर थी के धोखा होगा हमें  

आइना भी चेहरा अलग दिखायेगा हमें


पछतावा है अपने अभिमान पे हमें 

मान रहे थे जिसे अपना वही सजा देगा हमें 

ऐसी भी क्या मजबूरी कभी बात न हुई 

दूरी इतनी भी न थी के तय न हुई 


रिश्ता तो क्या निभता यार अपना !

डोर तो पहले ही कमज़ोर थी गांठ और पड़ गयी।  

6 comments:

  1. है आज भी पछतावा अपने अभिमान पे !

    समझ रहे थे जिसे अपना वही पराया लगेगा मुझे ।



    ऐसी भी क्या मजबूरी कभी बात न हो सकी !

    दूरी इतनी भी न थी के तय न हो सकी ।



    रिश्ते तो क्या निभते तुमसे मेरे यार !

    डोर तो पहले ही कमज़ोर थी गांठ और पड़ गयी। ।
    V.nice poem, or ye do lines kvita ki jan hai......k

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  2. बहुत सुंदर लगा

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  3. बहुत सुंदर कविता।

    एक अभिमान ही तो था पास मेरे उसको कैसे दूर जाने देते।

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