दुःख - दर्द | हिन्द कविता | DUKH - DARD |

दुःख - दर्द







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ये दर्द सुकून देता  है 

ये तकलीफ भली लगती है

इस दुःख से शिकायत कैसी ,

ये ख़ुशी जान लेती है। 


ये दर्द जिया है मैंने

इसकी अब मुझको आदत है

न जाने ख़ुशी कैसी होगी ,

जो सिर्फ सुनाई देती है। 


हाँ , जी है मैंने थोड़ी से

कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी 

फिर भी दुःख का मज़ा लिया ,

जो मुझे छोड़ कभी गया नहीं। 


ये दुःख भी बहुत जरूरी है

जो सुख को परिभाषित करता है

बिन दुःख के सुख का मूल्य नहीं ,

जो सुख का अनुभव कराता है |


में सुखी खुद को समझाता  हूँ

जो दुःख मेरे संग रहता है

में इसको खूब समझाता  हूँ ,

ये मुझको खूब समझता है । 


 मैंने अब इससे दोस्ती कर ली

ये मुझको प्यारा लगता है

ये नहीं रहता जब पास मेरे  ,

कुछ खाली खाली लगता है  


दोस्तों सच पूछो तो 

दुःख मेरा सच्चा साथी है

मेरे सारे संगी छूट गए ! 

बस इसकी यारी बाकी है। 


ये सुख मुझे ख़ुशी क्या देगा ,

जब दुःख का पलड़ा भारी है ।


MisVi Poetry


Comments

  1. एक नई सोच...
    शुझ का महत्व भी दुःख के अस्तित्व से ही है अगर दुःख न हो तो सुख अर्थहीन हो जाता है।

    सतीश।

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  2. बिन दुःख के सुख का मूल्य नहीं

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  3. 👏👏💖💖👌🏻👌🏻🤗🤗👍👍

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  4. ek dm shi kha aapn dukh hi schha sathi hai,, qki dukh ki ghari me hi apno ka pta chlta hai.......k

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