रास्ते का पत्थर |
** रास्ते का पत्थर **
है पसंद तेरे रास्ते का पत्थर
जो दिखता है मुझे तेरे घर की सड़क पर
हटाता हूँ रोज़ सुबह उसको जाकर
पर पुनः पाता हूँ उसको उसी जगह पर
जानता हूँ पत्थर के पैर नहीं होते
जाने कैसे वो दूरी तय करते
है उसको भी तेरी आदत पड़ी
रहना है उसे तेरी ही गली
है अचरज मुझे ये जान के बड़ा
के पत्थर ने भी क्या प्यार कर लिया
अब ना देखा जा रहा के ठोकरें उसको लगे
अपना लो उसे जो राह में तेरी खड़े
है शिकायत मुझे तुमसे बहुत
के चाहने वाले दुनिया में कम बहुत
है बड़ी किस्मत जो कोई तुझसे प्रेम करे
यूँ ही नहीं श्री कृष्ण सुदामा से जा मिले
चाहता हूँ उठा लो तुम रास्ते का पत्थर
मान लो उसे अपना रखदो आँगन में जाकर
क्या ज़रूरी है इन्सान से ही प्रेम करना
प्रेम तो है पत्थर में भी भगवान देखना।
❤🗿
ReplyDeleteक्या खूब कविता है रास्ते के पत्थर की मन मोह लिया आपने😍😍
ReplyDeleteअनु
यूँ ही नहीं श्री कृष्ण - सुदामा से जा मिले !!
ReplyDeleteITS ALL LOVE
है अचरज मुझे * ये जान के बड़ा !
ReplyDeleteके - पत्थर ने भी , क्या प्यार कर लिया ?
अब ना देखा जा रहा * के ठोकरें उसको लगे।
अपना लो उसे * जो राह मे नजरे बिछाए तेरी खड़े हम, तेरी खड़े हम,
बिनीता जी आप कि कविता पढ़ते पढ़ते मुझ मे भी कविता का भाव आ गया
मेघदूत रचती न ज़िन्दगी
ReplyDeleteवनवासिन होती हर सीता
सुन्दरता कंकड़ी आंख की
और व्यर्थ लगती सब गीता
पण्डित की आज्ञा ठुकराकर, सकल स्वर्ग पर धूल उड़ाकर
अगर आदमी ने न भोग का पूजन-पात्र जुठारा होता।
प्यार अगर...
Bahut hi khoobsurat rachna💖
ReplyDeleteThanks all for your lovely comments :))
ReplyDeleteBest Poem😊😊😊
ReplyDeletethanks dear :)
DeleteNice
ReplyDeleteNice poem
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया👏👏👏
ReplyDeleteसब कुछ इंसान की मान्यताओं पर ही निर्भर है किसी के दिल मे इंसान के सद्भाव नही होता तो कोई पत्थर को भी इतना प्रेम कर लेता है।
सतीश।