पतझड़ |
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सुना है तुम्हे कहते हुए ..
गम में आंहे भरते हुए
के, अकेले हम ही नहीं तन्हा !
और भी है..
जीवन के मेले में बिछड़े हुए
सुना है तुम्हे कहते हुए ..
हर मौसम में ढाढंस बढ़ाते हुए
के सीखो इन पत्तो से टिकना
जो पतझड़ में भी
है खुद से उमीदे लगाए हुए
सुना है तुम्हे कहते हुए ..
हर दिन को नया दिन बताते हुए
के जीना है हरपल को ..
खुशियूँ को दिल से लगाए हुए।
Truely commendable: )😁
ReplyDeleteWell written
ReplyDelete-By Neelam :) 😀
पिघल कर ज़ज़्बातों का शीशा
ReplyDeleteबह गया है मुझमें कहीं
तुम गए बहार गई
और बस पतझड़ ही पतझड़
रह गया है मुझमें कहीं।
kya baat....soo real
DeleteSupar
ReplyDeleteसीखो इन पत्तो से टिकना
जो - पतझड़ में भी..
है खुद से ... उमीदे लगाए हुए।
बहुत बढ़िया 👌👌👌
ReplyDeleteजीवन का यही मर्म है।
सतीश।
Thanks :))
ReplyDeleteLaajwab 👍👍👏
ReplyDeleteThank You friends :))
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