Monday, September 13, 2021

पतझड़ # Hindi Kavita On Autumn

पतझड़ 







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सुना है तुम्हे कहते हुए ..

गम में आंहे भरते हुए 

के, अकेले हम ही नहीं तन्हा !

और भी है..

जीवन के मेले में बिछड़े हुए 


सुना है तुम्हे कहते हुए ..

हर मौसम में ढाढंस बढ़ाते हुए 

के सीखो इन पत्तो से टिकना 

जो  पतझड़ में भी

है खुद से  उमीदे लगाए हुए


सुना है तुम्हे कहते हुए ..

हर दिन को नया दिन बताते हुए

के जीना है हरपल को ..

खुशियूँ को दिल से लगाए हुए।










9 comments:

  1. पिघल कर ज़ज़्बातों का शीशा
    बह गया है मुझमें कहीं
    तुम गए बहार गई
    और बस पतझड़ ही पतझड़
    रह गया है मुझमें कहीं।

    ReplyDelete
  2. Supar
    सीखो इन पत्तो से टिकना

    जो - पतझड़ में भी..

    है खुद से ... उमीदे लगाए हुए।

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया 👌👌👌

    जीवन का यही मर्म है।

    सतीश।

    ReplyDelete

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