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ऐसे ही बस कुछ नहीं
क्या है कोई बात नहींशायद सही पता नहीं
और बताओ कुछ नहीं
इन्ही शब्दों से है
पहचान हमारी होते इन्ही से
दिन शुरू और रातें ख़तम हमारी
क्या बोलू और क्या सोचूँ
बस यार !
तुम सही सारी गलती हमारी
❤❤❤❤
ReplyDeleteयही है * अल्फ़ाज़ हमारे
ReplyDeleteतुम से शुरू और
तुमसे पे ही ख़तम सारे
पहचान हमारी !
Wah kya Kavita hai!
ReplyDeleteFrom Neelu
आप कि हर बाते दिल को छू के ही निकलती है बहुत सुंदर लिखती हो l
ReplyDeleteSahi kha aapne bss apne glti na hokr bhi apni manlo to sb khus ho hai... Aapki poem me aajkal ka jo pyar h vo yhi ho gya h....👍👍
ReplyDeleteSuperb 👏👏
ReplyDeleteI Like this Poem😊😊💓💓
ReplyDelete:) :)
Deleteक्या खूब लिखा हैI👏👏👏
ReplyDeleteजिसे रिश्ता बचने की चाहत होती है।
उसे बिना गलती के माफ़ी माँगने की आदत हो जाती है।
सतीश।
Agree...
DeleteThank You All :))
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