Sunday, August 29, 2021

ज़िद - हिंदी कविता * ZID HINDI KAVITA


 







क्या ज़िद थी  तेरी के दूर हो गए 

सही होके भी हम गलत हो गए

तेरे फैसलों ने मजबूर इतना किया  

के पास रहके भी तुझसे दूर हो गए


सच साबित न कर सके हम कभी भी 

और झूठ के आगे तेरे मजबूर हो गए

जो तूने कहा वो सह न सके हम 

क्या सामना करते नज़र से दूर हो गए


जो उम्मीद थी मेरी वो न उम्मीद हो गई 

जिसे साथ देना था वो सबसे पहले दूर हो गए

क्या खबर थी यूँ बिखरेगा आशियान मेरा 

 के घर जोड़ने वाला ही तोड़ेगा घर मेरा 








6 comments:

  1. आप बहुत सुंदर लिखती हो पर देखो कविता बहुत ज़्यादा मार्मिक नही लिखा करते 👌✍️❤️

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  2. Nice 👍 poem.. aapki poem pdke lgta hai jese meri filings ko aap sabd de deti.. ,,😘,...k

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  3. जिंदगी की हकीकत को शब्दों में पिरोया बहुत खूब 👏👏

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