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देखी सारी झूठी खुशियां
रंग ही फूलों से अलग हुए
है, बस चेहरे पे चेहरा
झूठी ही तस्सली देनी है
बस अपनी -अपनी कहनी है
सच क्या है ये पता नहीं
अपने सिवा कोई दिखा नहीं
अब क्या कहे तुझसे नादान !
के तू आज भी है "अनजान"।
its Realy vary nice poem....k
ReplyDeleteSupar
ReplyDeleteThnx
Deleteझूठी.. एक उम्र गुज़ार दी ,
ReplyDeleteजो ना थी खबर.. वो छाप दी।
कहने को तो.. हम सब कुछ थे ,
पर फिर भी.. तेरी पदवी जान लीया
कहने को तो.. हम सब कुछ कहे,
क्या क्या मन मे भाव आ जाते है आप सब ही ब्याखान कर सकती हैं हम कि मजाल क्या है, बहुत सुंदर रचना विनीता जी आप कि है
ReplyDeleteDhanyavad Ji
DeleteKya khoob kalakara hain aap 💙
ReplyDelete:))
Deleteसच क्या है - ये पता नहीं झूठी ही- तस्सली देनी है,
ReplyDeleteबस अपनी -अपनी कहनी है
झूठी ही- तस्सली देनी है,
ReplyDeleteबस अपनी -अपनी कहनी है
झूठी ही- तस्सली देनी है,
ReplyDeleteबस अपनी -अपनी कहनी है क्या खूब लिखा है ने बहुत सुंदर वहा वाह
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ReplyDeleteEk Sacchi Kavita
ReplyDeleteHmmm it is, thnks
DeleteKeep on writing👌🏻👌🏻👌🏻👍🏻
ReplyDeleteShandaar andaaz-e-bayaan🌹
ReplyDeleteThanku :))
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