Tuesday, August 03, 2021

शहर तेरा - हिंदी कविता

 शहर तेरा

  




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छोड़ आये हम शहर तेरा

देखी सारी झूठी खुशियां

रंग ही फूलों से अलग हुए 

है, बस चेहरे पे चेहरा



झूठी ही तस्सली देनी है

बस अपनी -अपनी कहनी है 

सच क्या है ये पता नहीं 

अपने सिवा  कोई दिखा नहीं 


अब क्या कहे  तुझसे नादान !

के तू आज भी है "अनजान"।  



17 comments:

  1. झूठी.. एक उम्र गुज़ार दी ,

    जो ना थी खबर.. वो छाप दी।



    कहने को तो.. हम सब कुछ थे ,

    पर फिर भी.. तेरी पदवी जान लीया
    कहने को तो.. हम सब कुछ कहे,

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  2. क्या क्या मन मे भाव आ जाते है आप सब ही ब्याखान कर सकती हैं हम कि मजाल क्या है, बहुत सुंदर रचना विनीता जी आप कि है

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  3. Kya khoob kalakara hain aap 💙

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  4. सच क्या है - ये पता नहीं झूठी ही- तस्सली देनी है,

    बस अपनी -अपनी कहनी है

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  5. झूठी ही- तस्सली देनी है,

    बस अपनी -अपनी कहनी है

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  6. झूठी ही- तस्सली देनी है,

    बस अपनी -अपनी कहनी है क्या खूब लिखा है ने बहुत सुंदर वहा वाह

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  7. This comment has been removed by a blog administrator.

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  8. Keep on writing👌🏻👌🏻👌🏻👍🏻

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