झूठी.. एक उम्र गुज़ार दी ,
जो ना थी खबर.. वो छाप दी।
कहने को तो.. हम सब कुछ थे ,
पर फिर भी.. तेरी रजा जान ली।।एक आस में हम - रह गए ,
तेरा दर्द शायद - सह गए
आंखें खुली तो, ज्ञात आया ।
बस धोखा, ही हाथ आया ।।
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आज नहीं तो कल बनेंगे मेरे बिगड़े काम भोलेनाथ पे विश्वास मुझे है वो सुनते मन की बात देर है पर अंधेर नहीं जाने सब संसार परम पिता परमेश्वर ...
Nice 👍
ReplyDeleteVary nice 👌👏
ReplyDeleteati sunder pnktiya.....k
ReplyDeleteTrue lines
ReplyDelete❤true
ReplyDeleteThanks :)
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है। आपकी पंक्तियों ने पुरानी यादें फिर ताजा कर दी।
ReplyDeleteWow mousi nice poem
ReplyDeleteआंखें खुली तो, ज्ञात आया ।
ReplyDeleteबस धोखा, ही हाथ आया ।।