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क्रोध में मौन रहना ही उत्तम मार्ग है
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क्रोध में मौन रहना ही उत्तम मार्ग है
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्णा कहते की मनुष्य को फाल की इच्छा किये बगैर अपने कर्त्वय को करते रहना चाहिए।
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मसरूफ है इस कदर इस ज़िन्दगी मे
रूबरू है हर पहर एक नयी कशीदगी मे ||
दिन की शुरुवात है और दिन ख़तम हो चला
रोज़ की तरह यूँही फिर ऐतबार हो चला ||
कह रही है वादियाँ, दरख्त और ये क्षितिज
सुकूं को जो तुझको दे रहा वो साथ साथ चल रहा ||
तमाशबीन है सभी और मौन हर शक़्स है
क्या दिलो में चल रहा ये जानता कौन है ||
कोई मिले कही कभी तो हाल उसका पूछ लो
इस मतलबी ज़हान में किसी को तो अपना लगो ||
Ankylosing Spondylitis |
Teacher's Day |
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गुरु गोविन्द दोउ खड़े
काके लांगु पाएं
बलिहारी गुरु आपने
गोविन्द दियो बताये
इस दोहे के अनुसार
गुरु और भगवान् दोनों ही सामने खड़े है
लेकिन गुरु ने भगवान् के बारे में शिष्य को अवगत करा रखा है
और जो ज्ञान देता है वही गुरु है और बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता
इसलिए गुरु के चरण स्पर्श प्रभु से पहले किये जाते है।
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जब मैं था वो नाही
अब वो है मैं नाही
प्रेम गली इतनी सांकरी
इसमें दो न समाही ||
Life इम्तिहान है |
ये कैसा एहसास है
के दर्द भी अब रास है
बोझल है आँखें थकान से
न जाने किसकी आस है
कह रही है झुकते उठते
खुद से ही ऐतराज़ है
छलावे की ज़िन्दगी में
किसपे ऐतबार है !
मूँद ली ऑंखें अब
दीखता सबकुछ साफ़ है
क्यू होगा अब उज्र किसी से
हम भी तो नादान है
चल रहे है भेड़ चाल
ये भी कहा आसान है
कलेजा रख दिया निकाल के
क्या अब भी इम्तिहान है !
एक ही जनम में जी ली है कई बार
सफर ऐ ज़िन्दगी में ठहराव नहीं है
बिता हुआ मंज़र है आँखों के सामने
बढ़ चुके है आगे मगर ऐतबार नहीं है
रुकू किसी मोड़ पे तो सवाल है कई
भागते है खुद से या पहचान नयी है
क्या खो दिया है हम भी कभी जान न सके
तलाशती आंखों को कई बार जुगनू दिखे
कहना तो कुछ नहीं है एक शिकवा है ज़रा
क्यू किराये की ज़िन्दगी में एहसान बहुत है
इंतज़ार |
जो दिल में है कह देते है
इश्क़ जो तुमसे करते है
अंधेरो से रौशनी की बात करके
दिल के चिरागो को रौशन करते है
रास्तों से मंज़िल का पता पाते है
और भूले हुए को रास्ता बताते है
अपने ख्यालों से ले सुकून
एक नया आशियाँ बनाते है
करना है दूर तक सफर तन्हा
इसलिए यादों को जवां रखते है
फ़िज़ूल है तुमसे वफ़ा की उम्मीद
इसलिए ज़ख्मो को हरा रखते है
चेहरे पे न दिखे दिल की तख्ती
इसलिए मुस्कान बड़ी रखते है
तुम आओ या न आओ दोस्त मेरे
हम इंतज़ार तेरे सुभू शाम करते है
ज़िद्दी स्वाभाव बचकानी हरकते
अपनी मनमानी और तेवर तीखे
रोते हुए को भी हँसा दे
चेहरा देख के हाल बता दे
कोई बहाना जहां चल न पाए
हर बात पे कसम उठाये
परवाह ऐसी अधिकार जताये
कोई कबतक नज़र चुराए
गुस्से में भी इतना सत्कार
आप के अलावा कोई शब्द न आए
खुद से ज़ादा परवाह करे जो
ऐसे प्रिय को कौन सताए
अशआर
(समय / वक़्त) |
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समय ने धुंद की चादर हटा दी
और वास्तविकता की पहचान करा दी
मुखोटे थे सुन्दर मासूम और निश्छल
वक़्त के थपेड़ो ने असलियत दिखा दी
वो धोखे में जीना खुदी में ही रहना
नए आईने ने वो पहचान मिटा दी
अब जैसा है चेहरा वैसा लगे तिलक
रूपए ने इंसान की कीमत घटा दी
वो लहज़ा वो अदब वो रीति रिवाज़
नए चलन ने वो तहज़ीब भुला दी
अशआर
Life Quotations In Hindi |
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ज़िन्दगी कुछ ऐसे गुज़र गयी
हर रिश्ते में एक रिक्तता रह गयी
मिन्नतों से मिले थे जो हमें
उनके बिछड़ने की कसक आमरण रह गयी
निरस्ता हर चेहरे पे अब दिखने लगी
लगता है दूभर समय की परख होने लगी
वयस इतनी नहीं जितनी खिन्नता मिली
यहाँ खोने के लिए कुछ नहीं ऐसी अमीरी मिली
साथ चले तो बहुत पर साथ निभा न सके
जहाँ वास्तविकता हो वहाँ व्योहार न चले
अशआर
उन आँसुओं का क्या जिन्हे तुम रोक न सको
और वो परवाह है कैसी जिसे तुम जता न सको
बेइंतिहा गिले शिकवे और बदनामी लिए हुए
देखु कैसे ये आईना अपनों कि तोहमत लिए हुए
कसूर है किसका सजा किसको मिली है
टूटा है ये दिल इतना के आवाज़ न हुई है
हार गए है किस्मत से लकीरो में तेरा नाम नहीं
बदनामी के सिवा इस रिश्ते का और कोई अंजाम नहीं
ख़ामोशी है दरमियाँ के कोई उम्मीद नहीं है
भूलू कैसे तुम्हे के तेरे सिवा कुछ याद नहीं है
श्री राम |
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हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
जिस प्रकार प्रभु अनंत है जिनका कोई पार नहीं पा सकता
उसी प्रकार से भगवान की कथाएं भी अनंत है ॥
सब संत लोग इन्हे अनेक प्रकार से कहते सुनते है
श्री राम चंद्र जी का सुन्दर चरित्र करोणो युगो में भी गाए नहीं जा सकते ॥
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संतान के लिए भगवान है आप |
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घर परिवार का सहारा
एक स्तम्भ जिसपे है गर्व सारा
अपने कर्तव्यओं से लदा हुआ
पिता जिसपे है बोझ सारा
क्या सोचा कभी उनके भी है अरमान
नहीं जीवन उनका संघर्ष का नाम
जो सबके बारे में सोचे
अपने सभी फ़र्ज़ निभाए
है उसकी अपनी भी ज़रूरते
क्यू परिवार कभी समझ न पाए
थोड़ी परवाह कुछ बात चीत
हंसी के पल और उनकी सीख
और क्या चाहिए मात पिता को
दो मान सम्मान और जीत लो दिल
बच्चे हो जिम्मेदार तो सहारा बनते
आगे बढ़के हाथ थाम लेते
ख़ुशी बाप की दुगनी हो जाती
जब कंधे तक बेटे की लम्बाई हो जाती
एक साथी जैसा रिश्ता बन जाता
दुःख सुख आपस में बँट जाता
सलाह मश्वरा और रिश्ते नाते
घर में ही फैसले हो जाते
जितना हो सके समय दो इनको
साथ रहो और खुश रखो इनको
है किस्मत जो सिर पे हाथ
नित्य नियम लो आशीर्वाद
असली धन -दौलत माँ बाप
संतान के लिए भगवान है आप।।
तेरे साथ से संसार है
पूरा होता परिवार है
किस्मत भी देती उसका साथ
सिर पे जिसके माँ का हाथ
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खेतो में अनाज है तुमसे
इमारतों की पहचान है तुमसे
मजदूर बिना जीवन न है आसान
इनके श्रम से ही है देश की पहचान
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माखन चोर नन्द किशोर
नटखट कान्हा और रणछोड़
प्रेम की राह दिखाने वाले
हरी बोल हरी बोल
*सुविचार*
गिरने के डर से
चलना नहीं छोड़ा करते
रास्ता मुश्किल हो तो क्या
उद्देश्य नहीं बदले करते
हार या जीत, दो ही तो ओहदे है
पराजय की डर से कोशिश नहीं छोड़ा करते
अवसर देर से सही मिलते ज़रूर है
निराश होके ज़िन्दगी के कपाट बंद किया नहीं करते
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क्या कहु तुमसे
तुम्हे सब पता है
बिन बोले सब जान लो
तुम में वो कला है
तेरा ही जीवन
प्रभु तेरी ही साँसे
है संपर्पण तुम्ही को
मेरी तो पहचान तुम्ही हो
करू सेवा भक्ति
मैं निष्ठां से तेरी
कृष्णा, कृपा करो ऐसी
जिसमे भलाई हो सबकी
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मात पिता है संसार जिसके
बुद्धि के देवता जिन्हे सब कहते
जो खाये मोदक मिष्ठान
करे मूषक की सवारी
वही तो अपने गणपति मंगलकारी
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समय को अपना समय दो
वही तो अनमोल है
जो आपको ज्ञान दे
उस से बड़ा कौन है
वक़्त पे जो काम आये
वही तो घनिष्ट है
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आपको आपकी उम्र नहीं
आपका बड़प्पन बड़ा बनाता है
झुकने से आपका मान कम नहीं
और बढ़ जाता है
अच्छी संगत से सद्गुण है आते
और जीवन सफल हो जाता है
शिक्षा से है ज्ञान मिलता
जीने का सलीका आ जाता है
प्रेम से है परवाह आती
और जीने का उद्देश्य मिल जाता है।
प्रेणादायक कविता |
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बुरे समय को पीछे छोड़
बढ़ना है आगे की ऒर
बिना रुके ऒर बिना डरे
अपनी मंज़िल की ऒर बढे
राह की रुकावटें
मेहनतो से हट जाएँगी
जटिल परेशानियां
पराक्रम से सरल हो जाएँगी
मूँद ले आंखों को अपनी
लक्ष्य पे ध्यान केंद्रित कर
भूल के अतीत ऒर भविष्य
वर्तमान को मजबूत कर
बस कदम उठा
ऒर कूच कर
जीत होगी ज़रूर
बस खुद पे विश्वास कर
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Leaves : पत्तियाँ |
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धूप - छाव से बेखबर
पतझड़ - बसंत से अंजान
पेड़ो पर फिर आयी है कोंपले
लेके एक नयी पहचान
दमकती सी इठलाती हुई
सजी हुई है डाली पे
चमक रही हीरे जैसी
वृक्षों की हर टहनी पे
देख के मन है प्रस्सन हुआ
बच्चा जैसा खिलखिला रहा
इन धानी रंग की पत्तियों ने
दरख्तों को सजा दिया
देखने है इन्हे सारे मौसम
वसंत, ग्रीष्म, वर्षा ,शरद
हेमत और शीत ऋतू
पत्तियाँ है पेड़ का अहम् भाग
इनसे ही पेड़ का भोजन बनता
और जीवो को प्राणवायु मिलता
कोंपले से पत्ती बनने का सफर
अपने आप में है एक सबक
शाखाओं से अपनी जुड़े रहे
स्वय को खुश और व्यस्त रखे l
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कलयुग के रिश्तों का
इतना सा फ़साना है
न मुझे कोई मतलब तुमसे
न तुम्हे ही कोई रिश्ता निभाना है
मिया बीवी और बच्चे बस
बाकि सबसे औपचारिकता निभाना है
और रिश्तों से कोई दरक़ार नहीं
एक नाम का बोझ उठाना है
अपना खाना ही मुश्किल है
यहाँ किसको बना के खिलाना है
अब प्यार नहीं तकरार है
तेरे मेरे की मार है
पैसों ने लेली जगह सबकी
हाल पूछना भी दुश्वार है
बड़ा परिवार और ज़ादा सुख
वो तो सपना पुराना है
हम दो और हमारे दो
इससे आगे क्या किसी को जाना है
छोटा परिवार और भीड़ कम
अब ये नया नारा है
दादा दादी और नाना नानी
वो तो गुज़रा ज़माना है
माँ - बाप को पहचान ले बच्चे
तो समझो गंगा नहाना है l
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ॐ गन गणपतये नमो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ लम्बोदराय नमः
ॐ गणेशाये नमः
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